01 November 2024
चुनाव की आहट होते ही हम राजनैतिक पंडितों के पेट में ज्ञान के मरोङे उठने शुरू हो जाते हैं। पहले तो टिकटों को लेकर हम कयास लगाते हैं, फिर कौन जीतेगा उस पर गणित बैठाते हैं। भले ही हमें हमारे मौहल्ला में भाव नहीं मिलता हो पर पूरे देश की गणित हमें मुंह जबानी होती है।
उप चुनाव है तो विश्लेषण वाला बुखार हमें भी आया पर क्यूं किसी की दिवाली खराब करें तो आज रामा श्यामा पर हाजिर हुआ हूं।
पहले तो आप सभी सुधि स्वजनों को दिपावली पर्व की बहुत बहुत शुभकामनाएं, अभिनंदन एवं सादर यथा योग्य अभिवादन!
इन चुनावों में भाजपा को खोने के लिए कुछ नहीं है। सिर्फ सलूंबर से भाजपा के विधायक के निधन से उप चुनाव है। शेष छहों सीटों में रोत व बेनीवाल सांसद बन गए। रामगढ़ से कांग्रेस विधायक के निधन से उपचुनाव है बाकी झुंझुनूं, दौसा व देवली उनियारा से जीते कांग्रेस विधायक सांसद बन गए तो उप चुनाव हो रहे हैं।
राजस्थान में यह ट्रेंड रहा है कि उप चुनाव में मतदाता सत्ता के साथ रहते आए हैं तो फायदा भाजपा को मिलना तय है। सलूंबर से सहानुभूति कार्ड खेला गया है तो सलूंबर भाजपा को तय!
दो जाट एमएलए एमपी बन गए तो इन दोनों पर जाट ही चुनाव लङ रहे हैं। वोट करने में सबसे समझदार कौम जाट होती है मकराना को छोड़कर। तो खींवसर हम आरएलपी को दे रहे हैं। यह जाट स्वाभिमान का मामला है। झुंझुनूं शीशराम जी का प्रभाव क्षेत्र है। दलित, मुस्लिम और किसान; तो यह सीट हम कांग्रेस को दे रहे हैं। आदिवासी स्वाभिमान भी होता है तो रोत वाली सीट फिर बाप को दे रहे हैं।
दौसा बाबा का बेल्ट है। गहलोत जी भी यहां इशारा कर गए तो यहां भाजपा तय। देवली उनियारा में नरेश मीणा ने भाजपा के पक्ष में गणित बैठा दी है।
तो दो जाट, दो मीणा, एक गुर्जर व एक आदीवासी के बाद हमारी इच्छा तो अल्पसंख्यक को जिताने की थी, सहानुभूति कार्ड भी है पर हरियाणा खासकर मेवात से नजदीकी यहां भारी पड़ रही है। भाजपा का पूरा फोकस इसी सीट पर है।
अब आते हैं किसको क्या मिला पर। खींवसर और चौरासी दोनों क्षेत्रीय दलों के गढ है। जीत गए तो कोई बङी बात नहीं, हारे तो नुकसान पक्का। झुंझुनूं ओला परिवार की सीट है, जीते तो क्रेडिट ओला परिवार को हारे तो डोटासरा पर ठीकरा। दौसा में भाजपा जीती तो बाबा का कद बढ़ा और पायलट की साख पर संकट। भाजपा हारी तो बाबा का जाप्ता। देवली उनियारा में भाजपा जीती तो संगठन की जीत और पायलट की साख दांव पर। और नरेश जीता तो विधानसभा में एक और रविंद्र सिंह हो जाएगा। यदि रामगढ़ भाजपा जीतती है तो शर्मा जी का कद बढना तय और हारे तो ठीकरा संगठन पर है ही।
कुल मिलाकर इन उप चुनाव में भाजपा नफे में ही है। वैसे संख्या बल का भी संकट नहीं है तो ज्यादा टेनसन नहीं है। फिर राजनीति की उलटी पढ़ाई होती है। कहीं हार में भी जीत का आनंद आ जाता है और जीत में भी हार महसूस होती है। तभी तो घात प्रतिघात और शह चाल का खेल इसे समझा जाता है।
#आपणो अग्रणी राजस्थान
#नमो नमो
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