उप चुनाव परिणाम
मैंने अपने एक नवंबर के ब्लॉग में झुंझुनूं से कांग्रेस, खींवसर से आरएलपी व चौरासी से बाप व शेष चार सीटें भाजपा को दी थी। मेरे विश्लेषण में खींवसर, झुंझुनूं व दौसा में उलटफेर हुआ और भाजपा की एक सीट बढी।
मैंने अपने ब्लॉग में नतीजों के असर पर भी कयासबाजी की थी। निस्संदेह इन चुनावों में भाजपा के लिए पाने के ही अवसर थे क्योंकि प्रदेश में उपचुनाव में सत्ताधारी दल के साथ कनेक्ट रहने का ट्रेंड रहा है। जिन दो सीटों पर हारी है उनमें दौसा ने चौंकाया है। बैरवा कोई हाई प्रोफाइल नेता नहीं है, मात्र प्रधान रहे हैं वहीं भाजपा से किरोड़ी लाल मीणा ही उम्मीदवार थे। बाबा कांग्रेस सरकार में लङाकू रहे तो अपने आप को सीएम ही मान रहे थे। पिछले काफी दिनों से इस्तीफा दिए घूम रहे थे। विपक्ष के पास यह बङा मुद्दा था। इन चुनावों में भाजपा ने बाबा का जाप्ता कर ही दिया। बाबा अब भी चूं चपड़ करते हैं तो अगले चुनाव में इनका भी डोरा तै। अब सवाल उठता है कि बाबा की हार में फेक्टर क्या रहा? क्या गुर्जर मतदाताओं ने पायलट का साथ दिया? क्या सामान्य वर्ग के मतदाता सामान्य सीट होने के बावजूद एसटी वर्ग को टिकट दिए जाने से नाराज़ थे? क्या भाजपा सामान्य वर्ग से टिकट देती तो क्या जीत जाते?
झुंझुनूं से सालों से एक छत्र राज कर रहे ओला परिवार की हार भी चौंकाने वाली रही। गुढ़ा वाकई में अल्पसंख्यक वोट पाने में कामयाब रहे पर परंपरा गत भाजपा समर्थकों में सेंध नहीं लगा पाए। इसमें कोई शक नहीं कि भांबू जाटों के वोट पाने में सफल रहे।
चौंकाया खींवसर ने भी। हनुमान बेनीवाल संघर्षशील व्यक्तित्व के मालिक थे। लगता है अब राजनीति से विदाई का वक्त आ गया है। अब ज्योति मिर्धा फिल्ड में ज्यादा सक्रिय रहेगी व अगला सांसद का चुनाव भी जीतेगी।
कुल मिलाकर भजनलाल जी व मदन राठौड़ जी की जोड़ी कामयाब रही। डोटासरा का गमछा समटिजा, कई जगह जमानत जब्त हुई अच्छा लगा। रामगढ़ की जीत हम सनातन को समर्पित कर रहे हैं। एक रहें, नेक रहें और सेफ रहें।।
चौंकाया झारखंड ने भी। हमें ऐसी उम्मीद नहीं थी। महाराष्ट्र की बल्ले-बल्ले के लिए महाराष्ट्र की देव तुल्य जनता का बहुत बहुत आभार।
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