बदहाल हुई सफाई व्यवस्था
2007 की बात है। बरसात के दिन थे। मकराना में बच्चों में एक वायरल बीमारी फैली जिससे तीन बच्चों की मौत हो गई। तब भी मकराना में सफाई व्यवस्था बिगड़ी हुई थी और वर्तमान डंपिंग यार्ड नहीं था। समस्या यह भी आई कि कचरे को कहां डालें। तब हमारे एक समाज ब़धु (स्वामी) ने अपना खेत उपलब्ध कराया था जहां कचरे को जमीन में गाड़ा गया।
सफाई कर्मचारियों की हङताल के चलते पूरे राजस्थान में सफाई व्यवस्था गङबङाई हुई है। चूंकि सफाई कार्य एक जाति विशेष ही कर रहा है तो वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं बैठ पा रही। ऐसे में हम आम जनता का भी फ़र्ज़ बनता है कि कचरा सङक पर नहीं डालें। और आम जनता अपने इस फर्ज पर पूरी उतर भी रही है। कल भास्कर में इस समाचार के प्रकाशन के बाद मैंने अपने आवास गुणावती से माताभर फूलजी बावरी के मकान तक का नीरिक्षण किया। फूल जी बावरी के मकान से बंशी हलवाई की दुकान तक कहीं भी कचरा नहीं है। नाकौङा के शोरूम से जयशिव चौक, एलएमबी चौराहा, आरओबी, घाटी चौराहा और गुनावती तक कहीं भी कचरा डाला हुआ नहीं है। कचरा है तो सब्जी मंडी से लेकर बाजार वाली चक्की तक है। यह कचरा व्यापारियों द्वारा फैलाया हुआ है।
व्यापारी एक समझदार समुदाय है। वक्त बेवक्त आम जनता के काम आता है पर जाने क्यूं इस बार इनसे यह चूक हुई। सब्जी मंडी समिति, दवा विक्रेता संघ, रेडीमेड गारमेण्ट संघ व सदर बाजार व्यापारी संघ को चाहिए कि वे कचरा निस्तारण हेतु व्यवस्था बनाए। नगरपालिका में ट्रेक्टर ट्राली व जेसीबी है, तो नगर पालिका से संपर्क करें व दो ड्राइवर की व्यवस्था कर अल सुबह इस कचरे को हटवाने का प्रयास करावें। यह कार्य मौसम साफ होने पर तुरंत करवाना चाहिए। तब तक इस कचरे पर पाउडर का छिड़काव करा सकते हैं।
बारिश के मौसम में संक्रमण ज्यादा फैलता है। गंदगी से किटाणु भी फैलते हैं, ऐसे में शहर में कचरा का ढेर कहीं भी होना सही नहीं है।
किराणा व्यापारी सहित अन्य संघटन चाहे तो सामाजिक संस्थाओं से भी मदद ले सकते हैं। उम्मीद करते हैं कि कर्मचारियों की हङताल जल्द खत्म हो, नहीं तो पालिका वैकल्पिक व्यवस्था करे और सामाजिक संगठन व संस्थाएं पालिका की मदद करे।
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