हलवा सेरेमनी

 संवैधानिक संस्थाएं संविधान से संचालित होती है। देश चलाने वाले अधिकारी यूपीएससी से चयनित होकर आते हैं। यूपीएससी अपनी भर्तियां संविधान में दिए आरक्षण के अनुरूप करती है। 


अधिकारी का चयन और नेता का चुनाव हो जाने के बाद वह किसी जाति विशेष का नहीं रह जाता। उसे संविधान के अनुरूप काम करना होता है, ऐसे में बजट की हलवा सेरेमनी में अफसरों को जाति से पहचाना जाना कितना उचित है?


सोशल मीडिया पर एक होती है ट्रोल सेना। ट्रोलिंग में कई बार नैरेटिव गढे जाते हैं, लेकिन कांग्रेस के राजकुमार का सनातन विरोध जग जाहिर है। हाल ही में उन्होंने संसद में कहा कि हिंदुत्व वाले हिंसक है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में सोमवार को बजट पर संसद में बोलते हुए उन्होंने एक तस्वीर लहराते हुए पूछा कि यह हलवा किसमे बंटा, हलवा बनाता कौन है?


चीन से नजदीकी रखने वाले और टुकड़े - टुकड़े गेंग के सरपरस्त बने लोग यह भूल जाते हैं कि अधिकारियों का चयन यूपीएससी करती है और मोदी के 10 व अटल जी के 5 साल निकाल दें तो बाकी राज तो कांग्रेस का ही रहा है। संवैधानिक संस्थाओं और उनके रीवाजों पर अंगुली उठाने पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शानदार जवाब दिया। उन्होंने कहा कि यह हलवा सेरेमनी यूपीए ने शुरू की और उस वक्त अधिकारियों पर अंगुली क्यों नहीं उठाई गई?


जातिगत गणना किसी पार्टी का एजेंडा हो सकता है पर हर गतिविधि में जातिगत एंगल लाना कहां तक उचित है? अधिकारियों की नियुक्ति कोई जाति देखकर थोङे ही की जाती है! तभी तो भरी संसद में अनुराग ठाकुर को यह बोलने का मौका मिल गया कि जिनकी जाति का पता नहीं वे जाति गणना की बात कर रहे हैं। 


बजट सेशन जाति बहस पर केन्द्रित हो गया, क्या इन सांसदों को इसी लिए चुना गया था? आखिर विपक्ष क्यों यह स्वीकार नहीं कर पा रहा है कि वे बहुमत से कम रहे। संवैधानिक दायरे में होने वाले विरोध को ये व्यक्ति विशेष पर ले रहे हैं।


विदेशी इशारे पर सनातन को ध्वस्त करने का एक बहुत बड़ा षङयंत्र चल रहा है, जिसे समय पर सभी को समझने की जरूरत है। कुछ लोग देश की उन्नति सहन नहीं कर सकते इसलिए वर्ग संघर्ष की यह शुरुआत है।

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