राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़ा

 1999-2000 की बात है। बढ़ती जनसंख्या को लेकर मैंने एक लेख लिखा था -"मानवाधिकार से बढ़कर जीवनाधिकार का मामला"। तब मैं एनजीओ सेक्टर से जुङा हुआ था और सर्वोदय की युवा विंग राष्ट्रीय युवा संगठन का राजस्थान प्रदेश संयोजक था। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के मुख पत्र "नई आजादी " ने लेख को छापा। उस लेख ने मुझे युवा गांधीवादी विचारकों की श्रेणी में ला दिया था। यह बात अलग है कि लेख लेखन से पूर्व ही एक पुत्र और एक पुत्री के जन्म के बाद मेरी पत्नी ने बच्चाबंदी का आपरेशन करा लिया था। लेख में मैंने जनाधिक्य का पक्ष लेते हुए लिखा था कि कैसा समय आ गया है कि हम अर्थव्यवस्था के एक मजबूत अंग श्रम-मानव को समस्या समझ बैठे हैं। यह वो समय था जब वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनिवार्यता को लेकर डंकल ड्राफ्ट पास हो गया था। विश्व व्यापार खुले करने को लेकर यूएनओ मुहिम छेङे हुए था। तब हम वैश्विक व्यापार के खिलाफ में थे।


आज 25 वर्ष बाद हमने बहुत कुछ सीखा है। ग्लोबलाइजेशन व खुलेपन से आई खुशहाली हम परंपरागत तरीके से 65 वर्षों तक तो ला नहीं पाए। पर व्यापक वैश्विक परिवर्तन के बावजूद समग्र खुशहाली नहीं है। एक वर्ग है जो शिक्षा की मुहिम के बावजूद पढ नहीं रहा और समय के साथ कदमताल नहीं कर पाता। लेकिन जनसंख्या वृद्धि में सबसे ज्यादा रोल यही निभाता है। एक कल्याणकारी राज्य अवधारणा के तहत बजट का एक बड़ा हिस्सा यह वर्ग खा जाता है। एक वर्ग है जो दो बच्चे ही पैदा करता है और टेक्स भी देता है और एक वर्ग है जो एक दर्जन बच्चे पैदा करता है और सब्सिडी भी लेता है।


न ट्रैनों में जगह है, न अस्पतालों में जगह है और न ही श्मशानों में। गंदगी इतनी कि स्वच्छता अभियान चलाने पङते है। न पहाङ सुरक्षित, न जंगल, मैदान, नदियां, झीलें और समुद्र सुरक्षित।


ऐसे में हमें बढ़ती जनसंख्या पर अब विचार करना चाहिए। कल मुख्य सचेतक गर्ग ने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए विचार कर रही है। सरकार को निषेधात्मक पहल वाले उपाय तुरंत लागू कर देने चाहिए, जैसे - दो बच्चों से ज्यादा होने पर जन प्रतिनिधि नहीं बन पाना, नौकरी में प्रमोशन नहीं ले पाना, फ्री व अनुदान वाली सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाना आदि।


धरती पर बढ़ते बोझ, लोगों में बढते लोभ और बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं व मौसम परिवर्तन पर समय रहते विचार कर लेना जरूरी है।

Comments

Popular posts from this blog

उप चुनाव परिणाम

टीटी की हार के मायने: देवेश स्वामी

नव कैलेण्डर वर्ष की शुभकामनाएं