ठाकुर का कुआ

 मकराना से कुचामन वाया जूसरी जाते हैं तो कुचामन से पहले गढनुमा कई इमारतें आती हैं। ये इमारतें ठाकुरों की नहीं है। कुचामन मार्केट में आटोमोबाइल सेक्टर पर भी ठाकुर नहीं है। यहां चुनाव होने के बाद से एमएलए-एमपी भी ठाकुर नहीं है। यहां पर्वतों पर बना किला भी ठाकुरों का नहीं रहा।


नब्बे के दशक से उदारीकरण की शुरुआत के बाद लोगों के जीवन में भारी बदलाव आया है। सामान्य ढाणी में ब्याह -शादी के अवसर पर महादेव लिखी हजार पांच सौ गाङियां तो मिल ही जाएगी।


48 में देश आजाद हुआ, 77 साल में कई बदलाव आए हैं। लोकशाही मजबूत हुई है। 77 साल बाद भी एक पोस्ट ग्रेजुएट कद्दावर कांग्रेस नेता विधानसभा में बजट को ठाकुर का कुआ कह रहा है। बजट राजघरानों से जुङी व जनता द्वारा निर्वाचित एक महिला ने पढा था। वही महिला जिसके पिता को कांग्रेस ने जयपुर से लोकसभा का टिकट दिया था। जिस कांग्रेस में हरीश चौधरी पंजाब के प्रभारी रहे, उसी कांग्रेस में अलवर राजघराने से जुड़े भंवर जितेंद्र सिंह मजबूत किरदार निभाते हैं। दिग्विजय सिंह कांग्रेस को गाइड करते हैं। जोधपुर राजघराने से जुङी चंद्रेश कुमारी केन्द्र में मंत्री रही हैं। कोटा राजघराने के इज्जेराज सिंह कांग्रेस में जीतते रहे हैं। जिस मंत्री मंडल में हरीश जी मंत्री रहे उसमें खाचरियावास व भाटी भी थे।


तो यह बेमौसम की बांसुरी वादन का राज क्या है? अपने तीन कार्यकाल में अशोक गहलोत ने राजस्थान की छोटी छोटी ओबीसी जातियों सहित राजपूतों के एक वर्ग को कांग्रेस से जोड़ा था। लेकिन रामलला के माहौल में गहलोत सरकार रीपीट नहीं करा पाए साथ ही वैभव भी लगातार दूसरी बार हारे। वहीं पश्चिम राजस्थान की कई सीटों पर एक दशक बाद कांग्रेस ने वापसी की। किसान, दलित व अल्पसंख्यक कांग्रेस के परंपरागत मतदाता रहे हैं लेकिन अटल बिहारी वाजपेई जी द्वारा जाटों को ओबीसी में शामिल करने के बाद भाजपा ने इस वर्ग में बङी सेंधमारी की।लेकिन इस बार जातिवाद फिर हावी हो गया और हरीश जी जैसे लोगों को अवसर मिल गया। हरीश जी ने अब कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट कर दी है। जातिवाद की हवा पुनर्जीवित कर एक जाति विशेष को कांग्रेस में रिजर्व करने की कोशिश की है।


कांग्रेस सनातन संस्कृति पर हमेशा नकारात्मक रही है। ऐसे में एक जाति को टारगेट कर वोट बैंक मजबूत करने की इस रणनीति का करमाबाई, रानाबाई, फूलांबाई, धन्नाजी भगत, जांभोजी, जसनाथ जी की परम्परा वाले व धरती से जुड़े लोगों को समझदारी से जवाब देना होगा।


हरीश जी पोस्ट ग्रेजुएट हैं, इन्हें पता होगा कि राजस्थान को पहले राजपुताना कहा जाता था। कुआ क्या, अंग्रेजी इतिहासकार तो लिखते हैं कि यहां की रेत भी क्षत्रियों की हड्डियों के चूरे से बनी हुई है। पहले राजशाही सत्ता की एक शैली थी, अब लोकशाही है और सभी ने खुले मन से लोकशाही का स्वागत किया है। तो यह जातिवाद की हवा फैलाना कहा तक उचित है।


# ठाकुर का कुआ

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