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Showing posts from July, 2024

हलवा सेरेमनी

 संवैधानिक संस्थाएं संविधान से संचालित होती है। देश चलाने वाले अधिकारी यूपीएससी से चयनित होकर आते हैं। यूपीएससी अपनी भर्तियां संविधान में दिए आरक्षण के अनुरूप करती है।  अधिकारी का चयन और नेता का चुनाव हो जाने के बाद वह किसी जाति विशेष का नहीं रह जाता। उसे संविधान के अनुरूप काम करना होता है, ऐसे में बजट की हलवा सेरेमनी में अफसरों को जाति से पहचाना जाना कितना उचित है? सोशल मीडिया पर एक होती है ट्रोल सेना। ट्रोलिंग में कई बार नैरेटिव गढे जाते हैं, लेकिन कांग्रेस के राजकुमार का सनातन विरोध जग जाहिर है। हाल ही में उन्होंने संसद में कहा कि हिंदुत्व वाले हिंसक है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में सोमवार को बजट पर संसद में बोलते हुए उन्होंने एक तस्वीर लहराते हुए पूछा कि यह हलवा किसमे बंटा, हलवा बनाता कौन है? चीन से नजदीकी रखने वाले और टुकड़े - टुकड़े गेंग के सरपरस्त बने लोग यह भूल जाते हैं कि अधिकारियों का चयन यूपीएससी करती है और मोदी के 10 व अटल जी के 5 साल निकाल दें तो बाकी राज तो कांग्रेस का ही रहा है। संवैधानिक संस्थाओं और उनके रीवाजों पर अंगुली उठाने पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने श...

राष्ट्रीय जनसंख्या नियंत्रण पखवाड़ा

 1999-2000 की बात है। बढ़ती जनसंख्या को लेकर मैंने एक लेख लिखा था -"मानवाधिकार से बढ़कर जीवनाधिकार का मामला"। तब मैं एनजीओ सेक्टर से जुङा हुआ था और सर्वोदय की युवा विंग राष्ट्रीय युवा संगठन का राजस्थान प्रदेश संयोजक था। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के मुख पत्र "नई आजादी " ने लेख को छापा। उस लेख ने मुझे युवा गांधीवादी विचारकों की श्रेणी में ला दिया था। यह बात अलग है कि लेख लेखन से पूर्व ही एक पुत्र और एक पुत्री के जन्म के बाद मेरी पत्नी ने बच्चाबंदी का आपरेशन करा लिया था। लेख में मैंने जनाधिक्य का पक्ष लेते हुए लिखा था कि कैसा समय आ गया है कि हम अर्थव्यवस्था के एक मजबूत अंग श्रम-मानव को समस्या समझ बैठे हैं। यह वो समय था जब वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार की अनिवार्यता को लेकर डंकल ड्राफ्ट पास हो गया था। विश्व व्यापार खुले करने को लेकर यूएनओ मुहिम छेङे हुए था। तब हम वैश्विक व्यापार के खिलाफ में थे। आज 25 वर्ष बाद हमने बहुत कुछ सीखा है। ग्लोबलाइजेशन व खुलेपन से आई खुशहाली हम परंपरागत तरीके से 65 वर्षों तक तो ला नहीं पाए। पर व्यापक वैश्विक परिवर्तन ...

ठाकुर का कुआ

 मकराना से कुचामन वाया जूसरी जाते हैं तो कुचामन से पहले गढनुमा कई इमारतें आती हैं। ये इमारतें ठाकुरों की नहीं है। कुचामन मार्केट में आटोमोबाइल सेक्टर पर भी ठाकुर नहीं है। यहां चुनाव होने के बाद से एमएलए-एमपी भी ठाकुर नहीं है। यहां पर्वतों पर बना किला भी ठाकुरों का नहीं रहा। नब्बे के दशक से उदारीकरण की शुरुआत के बाद लोगों के जीवन में भारी बदलाव आया है। सामान्य ढाणी में ब्याह -शादी के अवसर पर महादेव लिखी हजार पांच सौ गाङियां तो मिल ही जाएगी। 48 में देश आजाद हुआ, 77 साल में कई बदलाव आए हैं। लोकशाही मजबूत हुई है। 77 साल बाद भी एक पोस्ट ग्रेजुएट कद्दावर कांग्रेस नेता विधानसभा में बजट को ठाकुर का कुआ कह रहा है। बजट राजघरानों से जुङी व जनता द्वारा निर्वाचित एक महिला ने पढा था। वही महिला जिसके पिता को कांग्रेस ने जयपुर से लोकसभा का टिकट दिया था। जिस कांग्रेस में हरीश चौधरी पंजाब के प्रभारी रहे, उसी कांग्रेस में अलवर राजघराने से जुड़े भंवर जितेंद्र सिंह मजबूत किरदार निभाते हैं। दिग्विजय सिंह कांग्रेस को गाइड करते हैं। जोधपुर राजघराने से जुङी चंद्रेश कुमारी केन्द्र में मंत्री रही हैं। कोटा र...