टीटी की हार के मायने: देवेश स्वामी
मकराना, अमूमन जनता सत्ता के पीछे चलती है लेकिन करणपुर की जनता ने इस मिथक को तोङ दिया। बिना चुनाव जीते ही मंत्री बने टीटी को हरा दिया। डोटासरा ने कमेंट किया कि आप मंत्री तो बना सकते हो लेकिन विधायक नहीं। और जनता ने टीटी को नकार दिया। मंत्री बनाने पर हमलावर हुई कांग्रेस कह रही है कि जनता ने भाजपा के अहंकार को ठिकाने लगाया है।
ऐसा भी नहीं है कि करणपुर कोई कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1957 से अब तक 15 बार हुए चुनाव में कांग्रेस 8 बार, भाजपा तीन बार, स्वतंत्र उम्मीदवार तीन बार और एक बार सोशलिस्ट पार्टी जीती है। गत पांच चुनाव में एक बार कांग्रेस तो दूसरी बार भाजपा जीत रही थी। गुरमीत सिंह कुन्नर 1998 में 2008 में (स्वतंत्र) और 2018 में जीते बीच में 2003 व 2013 में सुरेन्द्र पाल टीटी जीते। इस बार बीमार कुन्नर ने अपने बेटे के लिए टिकट मांगा था लेकिन दिपेंद्र सिंह की तरह उन्हें ही रीपीट किया गया। चुनाव पूर्व कुन्नर शांत हो गए तो चुनाव 199 सीट पर ही 25 नवंबर को हुए। 03 दिसंबर को आए रिज्लट में भाजपा ने 115 पर जीत दर्ज की और 15 दिसंबर को भजन लाल मुख्यमंत्री बने। 30 दिसंबर को मंत्री मंडल विस्तार में टीटी को मंत्री बनाया गया। कयास यह थे कि भाजपा को अपनी स्थिति पता थी इस लिए इतिहास में पहली बार चुनाव के दौरान ही प्रत्याशी को मंत्री बनाया गया। नहरी क्षेत्र वाले क्षेत्र का चुनाव होने के कारण टीटी को विभाग भी नहरी विकास विभाग मिला लेकिन जनता ने डबल इंजन के बजाय विपक्ष में बैठना मंजूर किया।
पंजाब का सीमावर्ती क्षेत्र और बङी संख्या में जट्ट सिख होने के कारण यहां किसान आंदोलन और खालिस्तान आंदोलन का असर रहता है। हालांकि यहां आप का उम्मीदवार भी था पर 12570 वोट से रुपिन्द्र जीता और लगभग इतने ही वोट आप को मिले।
तो किसान का दिल कैसे जीतें, यह भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। हो सकता है यह रुझान लोकसभा चुनाव में भी अपना असर दिखाए और जोधपुर, नागौर के बाद गंगानगर भी कांग्रेस की झोली में जा सकता है।
एंटी इनकमबेक्सी गुरमीत कुन्नर को भी लेकर थी और टीटी को लेकर भी। अफसोस है कि कैडर बेस पार्टी में सैकिंड लाइन के नेता नहीं बन पा रहे हैं और जनता को हार थाक कर वंशवादी राजनीति को ही चुनना पङ रहा है।
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