रालोपा का अगला कदम क्या होगा?

 भाजपा तो हर समय चुनावी मोड में रहती ही है, अब कांग्रेस भी राजस्थान में सत्ता गंवाने के बाद लोकसभा चुनाव को लेकर गंभीर हो गई है। बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस ने प्रारंभिक तैयारियां शुरू कर दी है।


इन सबके बीच हालिया विधानसभा चुनाव में थर्ड फ्रंट की कवायद में लगी रालोपा पर आज नजर डालते हैं। किसान कौम को संगठित कर दलित व अल्पसंख्यक का सहारा लेकर राजस्थान में सत्ता हासिल करना किसान कौम का सपना रहा है। मारवाड़ के जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, बाङमेर, पाली, नागौर और शेखावाटी अंचल के चुरू, सीकर व झुंझुनूं लोकसभा क्षेत्र किसान कौम के गढ रहे हैं। रालोपा का फोकस इसी क्षेत्र पर रहता है। 2018 में पार्टी की स्थापना से पूर्व हनुमान बेनीवाल ने नागौर, बाङमेर, बीकानेर, सीकर और जयपुर में पांच किसान हुंकार रैलियां कर तबके भाजपा असंतुष्ट किरोङी लाल मीणा व घनश्याम तिवाड़ी के साथ रालोपा की स्थापना की थी। हनुमान बेनीवाल खुद 2008 में खींवसर से भाजपा से विधायक थे बाद में वसुंधरा राजे से अनबन के कारण स्तीफा दे दिया। 


2009 का लोकसभा चुनाव भी हनुमान बेनीवाल ने लङा तब कांग्रेस की ज्योति मिर्धा जीती। 2014 का चुनाव भाजपा हनुमान बेनीवाल के खङे होने से जीत पाई और 2019 में हनुमान बेनीवाल ने भाजपा से गठबंधन कर लोकसभा में पहली बार पहुंचे।


हनुमान बेनीवाल 2013 में खींवसर से निर्दलीय जीते। 2018 में रालोपा से जीते और 2023 में आजाद सेना के गठबंधन के बावजूद अकेले जीत पाए।


2018 की हार के बाद भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल से गठबंधन किया और राजस्थान में गहलोत सरकार होने के बावजूद दोबारा सभी सीटें जीती। इसके बाद हनुमान के सहयोगी रहे तिवाड़ी व मीणा पुनः भाजपा में आ गए पर किसानों के मुद्दे पर हनुमान बेनीवाल ने गठबंधन तोङ दिया।


2023 के चुनाव में भाजपा व कांग्रेस ने रालोपा को भाव नहीं दिया तो चंद्रशेखर आजाद के साथ मोर्चा बना कर सत्ता की चाबी हाथ में लेने की सोची लेकिन कई किसान नेताओं खासकर महिला नेताओं पर टिप्पणी करने से किसान कौम बेनीवाल से हट गई। खुद बेनीवाल अपनी सीट मुश्किल से निकाल पाए।


2024 के चुनाव पूर्व भाजपा आत्मविश्वास से लबरेज है और राम मंदिर निर्माण को संजीवनी समझ कर चल रही है। प्रदेश में भाजपा की सरकार भी है और हनुमान बेनीवाल ने खुद गठबंधन तोङा था तो भाजपा इन्हें भाव देने वाली नहीं। 23 के चुनाव में नागौर से हनुमान के कई सहयोगियों को भाजपा तोङ चुकी है।


हनुमान अब कांग्रेस से उम्मीद लगाए हैं। दरअसल विधानसभा चुनाव में हनुमान ने कांग्रेस को बहुत घाटा पहुंचाया तो लोकसभा चुनाव में नागौर, बाङमेर और जैसलमेर की सीटों के बदले रालोपा के प्रभाव वाली अन्य सीटों पर मार्जिन की रणनीति पर काम हो सकता है। वैसे भी कांग्रेस के पास जिताऊ चेहरों की कमी है तो कोई शक नहीं कि हनुमान कांग्रेस की शरण में चले जाएं। लेकिन कांग्रेस ने भी भाव नहीं डाला तो? 


हनुमान को अपना वजूद बचाए रखने के लिए कुछ सीटों पर रालोपा को चुनाव लङाना होगा और रालोपा मैदान में आती है तो भाजपा को फिर फायदा होगा।


कांग्रेस माइनोरिटी से कोई उम्मीदवार उतारती है तो नागौर हरेंद्र मिर्धा को दिया जा सकता है। और फिर चुनाव दिलचस्प हो सकते हैं।


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