कल जाकिर हुसैन के साहब के विजई जुलूस के मकराना में पहुंचने पर उनके द्वारा दिया गया भाषण संबल प्रदान करने वाला है। विधायक महोदय ने कहा कि वह आपके हर दुख सुख में साथ रहने का प्रयास करेंगे तथा हक व अधिकार की लड़ाई सड़क व सदन में जनता के हित में करते रहेंगे। साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया कि वे हर वक्त जनता के बीच मौजूद रहेंगे।
भाजपा से टिकट के एक और दावेदार है प्रकाश भाकर ने भी आज सुबह मुझे विश्वास दिलाया कि शहर हित में वे हमेशा अपना कंधा से कंधा मिलाकर खड़े रहने के लिए तैयार हैं। उम्मीद करते हैं की इस चुनाव में द्वितीय व तृतीय स्थान रहे प्रत्याशी भी शहर हित में राजनीति से ऊपर उठकर जनता के बीच रहने का प्रयास करेंगे।
हमारा एकमात्र उद्देश्य यही है कि सभी अपने हक व अधिकारों की प्राप्ति के लिए कोई अपने को अकेला महसूस नहीं करें इसलिए हम 5 साल तक राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए संबंधित विभागों से सार्थक संवाद बनाए रखेंगे व यथा संभव राहत लेने का प्रयास करेंगे।
राजनीति अब इस मोड़ पर आ गई है कि हर वक्त जनता के बीच रहना जरूरी हो गया है। हमारा प्रयास रहेगा कि मकराना में भी हम ऐसी परिस्थितियों पैदा करें ताकि चुनाव लड़ने के उचित उम्मीदवार अभी से हमारे बीच रहे व हमारे समस्याओं के समाधान में हमारे साथ मिलकर संघर्ष करें। सार्थक लोकतंत्र सिर्फ चुनाव तक ही नहीं है। चुनाव बाद अपने हक व अधिकारों की प्राप्ति के लिए संवाद, संघर्ष और संगठन करना भी है। सभी साथियों के सक्रिय सहयोग की उम्मीद की जाती है।
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उप चुनाव परिणाम
मैंने अपने एक नवंबर के ब्लॉग में झुंझुनूं से कांग्रेस, खींवसर से आरएलपी व चौरासी से बाप व शेष चार सीटें भाजपा को दी थी। मेरे विश्लेषण में खींवसर, झुंझुनूं व दौसा में उलटफेर हुआ और भाजपा की एक सीट बढी। मैंने अपने ब्लॉग में नतीजों के असर पर भी कयासबाजी की थी। निस्संदेह इन चुनावों में भाजपा के लिए पाने के ही अवसर थे क्योंकि प्रदेश में उपचुनाव में सत्ताधारी दल के साथ कनेक्ट रहने का ट्रेंड रहा है। जिन दो सीटों पर हारी है उनमें दौसा ने चौंकाया है। बैरवा कोई हाई प्रोफाइल नेता नहीं है, मात्र प्रधान रहे हैं वहीं भाजपा से किरोड़ी लाल मीणा ही उम्मीदवार थे। बाबा कांग्रेस सरकार में लङाकू रहे तो अपने आप को सीएम ही मान रहे थे। पिछले काफी दिनों से इस्तीफा दिए घूम रहे थे। विपक्ष के पास यह बङा मुद्दा था। इन चुनावों में भाजपा ने बाबा का जाप्ता कर ही दिया। बाबा अब भी चूं चपड़ करते हैं तो अगले चुनाव में इनका भी डोरा तै। अब सवाल उठता है कि बाबा की हार में फेक्टर क्या रहा? क्या गुर्जर मतदाताओं ने पायलट का साथ दिया? क्या सामान्य वर्ग के मतदाता सामान्य सीट होने के बावजूद एसटी वर्ग को टिकट दिए जाने से नारा...
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